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विपक्ष के आगे पस्त पीएम

सोमवार से संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू हुई जो मंगलवार और बुधवार को भी जारी रही। लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में इस विषय पर निस्संदेह विपक्ष ही सरकार पर हावी दिखा। जबकि सरकार के पास पूरा मौका था कि वह तथ्यों, आंकड़ों और पूरी जवाबदेही के साथ इस चर्चा में हिस्सा लेकर अपने अंक जनता के बीच बढ़वा लेती। सरकार ऐसा नहीं कर पाई, क्योंकि 22 अप्रैल के बड़े हमले के बावजूद उसकी दिलचस्पी इस मुद्दे पर सेना के किए कार्य का श्रेय लेने, सहानुभूति बटोरने और विपक्ष को घेरने में ज्यादा नजर आई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब मंगलवार को लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर भाषण दिया, तो उनकी तैयारी में कमी नजर आई। मंगलवार को ही प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के भी भाषण हुए। दोनों के भाषण अलहदा थे, लेकिन एक जैसे शानदार थे। जहां प्रियंका गांधी के भाषण में दुख और भावुकता नजर आई, वहीं राहुल गांधी के भाषण में नये तरह की आक्रामकता दिखी। इसके साथ ही राहुल गांधी ने जिस तरह आतंकवाद के खतरों, युद्ध के बदलते तरीकों, विदेश नीति में विचलन और इन सबकी वजह से कमजोर पड़ते भारत की चिंता पर चर्चा की, उसके जवाब में नरेन्द्र मोदी ढंग की दो बात भी नहीं बोल पाये। राहुल गांधी पहले भी संसद में पाकिस्तान और चीन के एक साथ होने की चिंता व्यक्त कर चुके हैं, मंगलवार को फिर से उन्होंने इसे दोहराया और यह भी बता दिया कि पहले दुनिया के अन्य देश पाकिस्तान में आतंकवाद के पोषण पर चिंता व्यक्त करते थे, लेकिन पहलगाम हमले के बाद जिन देशों ने भारत के लिए दुख व्यक्त किया, उनमें से किसी ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की। यानी अब भारत और पाकिस्तान को एक पलड़े पर तौला जाने लगा है, यह गंभीर चिंता का विषय है। राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को चुनौती दी कि यदि उनमें इंदिरा गांधी जैसी हिम्मत का जरा सा भी हिस्सा है तो वे इस सदन में डोनाल्ड ट्रम्प को झूठा कहें और बतायें कि युद्धविराम उनकी मध्यस्थता से नहीं हुआ। जाहिर है नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं कर पाए। आतंकवादी हमले को लेकर राहुल और प्रियंका ने जिस संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का अहसास जाहिर किया, नरेंद्र मोदी उसमें पूरी तरह चूक गए।

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