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कबीरपंथी भी सीएम योगी के “एकता के महाकुम्भ” के संकल्प का कर रहे समर्थन

  • महाकुम्भ में आये कबीर पंथ, पारख संस्थान के धर्मेद्र दास जी ने गंगा स्नान के बारे में बताए संत कबीर के विचार
  • कहा- मानव एकता, बंधुत्व और समरसता की स्थापना करना ही था कबीर दास का जीवन दर्शन
  • अपने जीवन से दुर्व्यसन या बुराई का त्याग करना ही गंगा स्नान है

महाकुम्भ नगर। विश्व के सबसे बड़े धार्मिक, आध्यात्मिक सम्मेलन महाकुम्भ में भारत की सनातन आस्था से जुड़े हुए सभी मत, पंथ और संप्रदाय को मानने वाले प्रयाग में संगम तट पर एकत्रित होते हैं। जिनके ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी में सत्संग कर महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालु जीवन के वास्तविक अमृत का पान करते हैं। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की इस त्रिवेणी में कबीर पंथ के पारख संस्थान के धर्मेंद्र दास जी संत कबीर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने महाकुम्भ में आये हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एकता के महाकुम्भ के संकल्प का समर्थन करते हुए उनका कहना है समाज में समता, एकता और मानवता के मूल्यों को स्थापित करना ही संत कबीर के जीवन दर्शन का मूल है।

गंगा स्नान तन से अधिक मन को पवित्र करने वाला

महाकुम्भ और गंगा स्नान के बारे में बताते हुए धर्मेंद्र दास जी का कहना है कि संत कबीर ने स्वयं गंगा तट पर काशी में जीवन व्यतीत किया। वो गंगा स्नान को तन से अधिक मन को पवित्र करने वाला मानते थे। उन्होंने बताया कि कबीर साहब ने अपनी एक साखी में गंगा जल को सबसे पावन और निर्मल मानते हुए, मानव मन को गंगा जल के समान निर्मल बनाने को ही ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग बताया।

कबीर मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर, पाछे पाछे हरि फिरै कहत कबीर कबीर

धर्मेंद्र दास जी ने बताया कि कबीर साहेब कहते हैं कि अगर मानव मन में जो बैर भाव, कलुष, राग-द्वेष भरा हो उसे दूर कर, मन को गंगा जल के समान पवित्र और निर्मल बना ले तो हरि यानि ईश्वर स्वयं उसकी परवाह करने लगता है। उन्होंने बताया कि कबीर साहेब ने ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल और सच्चा मार्ग बताया है मन को निर्मल करना क्योकि ईश्वर का वास हमारे मन में ही है जब वो मन राग, द्वेष से मुक्त होता है तो मानव को स्वंय ईश्वर का साक्षात्कार हो जाता है। अन्यथा बार-बार गंगा स्नान को लेकर कबीर दास तीखा प्रहार करते हुए कहते हैं कि नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।

दुर्व्यसन या बुराई का त्याग करें, यही दिलाएगा वास्तविक मोक्ष

धर्मेंद्र दास जी बताते हैं कि कबीर साहेब पाखण्ड का विरोध करते हैं और मन की सच्चाई पर जोर देते हुए कहते हैं कि आप कितना भी नहा लीजिए, लेकिन अगर मन का मैल दूर नहीं हुआ तो एसे नहाने का कोई लाभ नहीं। जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली से उसकी दुर्गंध और बदबू नहीं जाती है। धर्मेंद्र दास जी ने कहा कि गंगा स्नान कर हमें अपने मन को निर्मल बनाना चाहिए। गंगा स्नान कर हम अपने जीवन से कम से कम कोई एक दुर्व्यसन या बुराई का त्याग करें तो यही वास्तविक मोक्ष की ओर हमें ले जाएगा। उन्होंने कहा कि ज्ञान, वैराग्य और भक्ति की त्रिवेणी में निर्मल मन से स्नान करना ही मानव जीवन का वास्तविक मोक्ष है।

आडम्बर और पाखण्ड का विरोध करते थे कबीर

महाकुम्भ या प्रयागराज में कबीर दास के आगमन के बारे में बताते हुए धर्मेंद्र दास जी ने बताया कि कबीर दास जी के महाकुम्भ में सम्मिलित होने का कोई प्रसंग तो नहीं मिलता पर प्रयाग के झूंसी में उनके आने के बारे में कुछ जिक्र मिलता है। उन्होंने उस काल में झूंसी में कुछ मुस्लिम संतों के पीरों की कब्र या मजार की पूजा का विरोध किया था। कबीर साहब सभी धर्मों में व्याप्त आडम्बर और पाखण्ड का विरोध करते थे। धर्मेंद्र दास जी ने कहा कि कबीर साहेब सभी मानवों में प्रेम, सहिष्णुता, बंधुत्व और एकता की बात करते थे। वो मानव मानव में विभेद करने वाले सभी समाजिक विकारों जाति, पंथ, संप्रदायवाद का विरोध करते थे। उनका कहना था कि हमें अपना संपूर्ण जीवन मानवता के उत्थान के प्रति समर्पित कर देना चाहिए। यही सही अर्थों में ईश्वर की वंदना है।

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