ओपिनियन

वैज्ञानिकों पर कितना भरोसा करते हैं लोग?

वैज्ञानिकों और विज्ञान पर आम लोगों के भरोसे को लेकर हुए एक अध्ययन में लोगों से पूछा गया कि वे क्या सोचते हैं. अलग-अलग देशों के लोगों की राय में फर्क है. हाल के सालों में खासतौर पर विज्ञान जगत में यह चिंता बढ़ी है कि आम जनता में वैज्ञानिकों पर और वैज्ञानिक शोधों पर भरोसा घट रहा है. एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि यह पूरी तरह से सही नहीं है और अब भी आमतौर पर वैज्ञानिकों पर लोगों को ठीक-ठाक भरोसा है. हालांकि अलग-अलग देशों में यह कम या ज्यादा है.

नेचर पत्रिका में एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जो 68 देशों में किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित है. यह शोध ईटीएच ज्यूरिख की विक्टोरिया कोलोग्ना और ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के नील्स जी मेडे के नेतृत्व में 241 शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने किया है.

इस सर्वेक्षण में 71,922 लोगों से बात की गई है. इस सर्वेक्षण से यह पता चला कि अधिकांश देशों में ज्यादातर लोग वैज्ञानिकों पर विश्वास करते हैं. लोग यह भी मानते हैं कि वैज्ञानिकों को समाज और नीति निर्माण में ज्यादा हिस्सेदारी निभानी चाहिए.

अध्ययन के अनुसार, सार्वजनिक तौर पर लोगों का वैज्ञानिकों पर विश्वास अब भी ज्यादा है. यह अध्ययन विज्ञान, समाज की अपेक्षाओं और सार्वजनिक शोध प्राथमिकताओं पर विश्वास को लेकर महामारी के बाद सबसे बड़ा अध्ययन है.

सर्वे में औसतन लोगों ने 5 में से 3.62 अंक दिए. कोई भी देश ऐसा नहीं था जहां वैज्ञानिकों पर भरोसा बहुत कम हो. लोग वैज्ञानिकों की काबिलियत पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं. 78 फीसदी लोगों का मानना है कि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण रिसर्च करने में सक्षम हैं. 57 फीसदी लोग मानते हैं कि वैज्ञानिक ईमानदार हैं, जबकि 56 फीसदी ने कहा कि वैज्ञानिक समाज की भलाई के बारे में सोचते हैं. हालांकि, सिर्फ 42 फीसदी लोगों को लगता है कि वैज्ञानिक दूसरों की बातों पर ध्यान देते हैं.

अलग-अलग देशों में क्या स्थिति है?

सर्वे में यह भी देखा गया कि अलग-अलग देशों में वैज्ञानिकों पर भरोसा अलग-अलग है. पहले हुए अध्ययन कहते थे कि लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में वैज्ञानिकों पर भरोसा कम है. लेकिन इस बार ऐसा कोई पैटर्न नहीं दिखा. हालांकि, रूस और कई पूर्व सोवियत देशों जैसे कजाकिस्तान में वैज्ञानिकों पर भरोसा अपेक्षाकृत कम पाया गया.

एक-दूसरे का चक्कर काटते दिखे दो सितारे

डेनमार्क वैज्ञानिक ईमानदारी और क्षमता में मजबूत विश्वास रखता है. फिनलैंड में विज्ञान में पारदर्शिता के कारण विश्वास बहुत ज्यादा है. स्वीडन में प्रमाण-आधारित नीति निर्माण की सराहना की जाती है, जबकि जर्मनी में लोगों का भरोसा इनोवेशन से जुड़ा है. कनाडा में वैज्ञानिकों को दयालु माना जाता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिक शोध में विश्वास सबसे ऊपर है.

इसके उलट, रूस में संस्थागत विज्ञान पर व्यापक अविश्वास है. कजाखस्तान में सोवियत काल के बाद का ऐतिहासिक संदेह विश्वास को प्रभावित करता है, जबकि बेलारूस में पारदर्शिता की कमी के कारण विश्वास कम होता है. मिस्र में गलत सूचना विज्ञान में विश्वास को बाधित करती है, और पाकिस्तान में कम साक्षरता स्तर वैज्ञानिक संस्थाओं पर विश्वास को प्रभावित करते हैं.

भारत इस अध्ययन के अनुसार “मध्यम रूप से उच्च भरोसे” की श्रेणी में आता है. हालांकि यह वैज्ञानिकों पर सबसे ज्यादा भरोसा करने वाले टॉप 10 देशों में शामिल नहीं है, लेकिन भारतीय आमतौर पर वैज्ञानिकों को सकारात्मक रूप से देखते हैं, खासकर उनकी काबिलियत और समाज कल्याण में योगदान के लिए. हालांकि, भारत में भरोसे का स्तर शिक्षा, आय, और शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों जैसे कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है. गलत जानकारी और क्षेत्रीय भाषाओं में वैज्ञानिक संवाद की सीमित पहुंच जैसी चुनौतियां कुछ जनसमूहों के भरोसे को प्रभावित कर सकती हैं.

लोग क्या चाहते हैं?

सर्वे में यह भी देखा गया कि किस तरह के लोगों को वैज्ञानिकों पर ज्यादा भरोसा है. मसलन, महिलाओं और बुजुर्गों के बीच वैज्ञानिकों पर भरोसा पुरुषों और युवाओं से ज्यादा था. इसी तरह शहर में रहने वाले, साक्षर और अमीर लोगों ने वैज्ञानिकों पर ज्यादा भरोसा जताया.

ब्रिटेन में मिले डायनासोर के 16 करोड़ साल पुराने पदचिन्ह

सर्वे में पूछा गया कि लोग वैज्ञानिकों से क्या उम्मीद करते हैं. अधिकतर लोगों का मानना था कि वैज्ञानिकों को नीतियां बनाने में हिस्सा लेना चाहिए. हालांकि अगर लोगों को लगता है कि वैज्ञानिक उनकी समस्याओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो उनका भरोसा कम हो जाता है.

वैज्ञानिकों पर भरोसा कुल मिलाकर अच्छा है, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है. भरोसे में कमी के कई कारण हो सकते हैं. पहले कुछ मामलों में वैज्ञानिकों ने अनैतिक तरीके से काम किया, जिससे कुछ समुदायों में विश्वास कम हुआ. इसके अलावा, गलत जानकारी, झूठी जानकारी, और “साइंस पॉपुलिज्म” भी बड़ी चुनौतियां हैं. साइंस पॉपुलिज्म का मतलब है कि कुछ लोग वैज्ञानिकों को “जनता” के विरोध में देखते हैं. वे मानते हैं कि वैज्ञानिक आम लोगों की तुलना में कम समझदार हैं. ये विचार वैज्ञानिकों की साख को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

 

Reported by: DW | Deutsche Welle

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button